अक्षय तृतीया: सुख, समृद्धि और शुभ आरंभ का दिव्य पर्व
अक्षय तृतीया, जिसे 'आखातीज' भी कहा जाता है, हिंदू धर्म और जैन धर्म दोनों में एक अत्यंत पावन और शुभ दिन के रूप में मनाया जाता है। यह वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को आता है और 'अक्षय' शब्द का अर्थ है — "जो कभी क्षय न हो", यानी जो कभी समाप्त न हो। अतः, इस दिन किए गए शुभ कार्यों, दान-पुण्य और निवेश का पुण्यफल अक्षय माना जाता है — यानी हमेशा बढ़ने वाला।
अक्षय तृतीया का धार्मिक महत्व
भगवान विष्णु के अवतार परशुराम जी का जन्म इसी दिन हुआ था, इसलिए यह तिथि 'परशुराम जयंती' के रूप में भी जानी जाती है।
महाभारत के अनुसार, इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को अक्षय पात्र प्रदान किया था, जो उन्हें कभी न समाप्त होने वाला अन्न देता था।
जैन धर्म में, यह दिन भगवान ऋषभदेव के तपस्या पूर्ण करने और प्रथम आहार ग्रहण करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
अक्षय तृतीया के विशेष कार्य
सोना खरीदना: इस दिन सोना खरीदना अत्यंत शुभ माना जाता है, क्योंकि सोना समृद्धि का प्रतीक है और इसे जीवनभर बढ़ती संपत्ति का संकेत माना जाता है।
दान और पूजा: इस दिन गरीबों को अन्न, वस्त्र, जलपात्र आदि दान करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है।
नए कार्यों की शुरुआत: व्यापार, घर खरीदना, जमीन का सौदा करना, विवाह संबंध तय करना आदि कार्य इस दिन आरंभ करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
ज्योतिषीय महत्व: अक्षय तृतीया को 'अबूझ मुहूर्त' कहा जाता है — यानी इस दिन किसी भी शुभ कार्य के लिए पंचांग देखने की आवश्यकता नहीं होती।
अक्षय तृतीया पर पूजन विधि
1. प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें।
3. गंगाजल से शुद्ध कर पूजा स्थल तैयार करें।
4. तिल, चावल, सत्तू, ककड़ी, जल आदि का दान करें।
5. दीपक जलाकर विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें और सुख-समृद्धि की कामना करें।
अक्षय तृतीया 2025 में विशेष
इस वर्ष अक्षय तृतीया कई शुभ संयोगों के साथ आ रही है, जिससे इसका महत्व और भी अधिक बढ़ गया है। जो भी साधक, व्यापारी, गृहस्थ या विद्यार्थी इस दिन विशेष प्रयास करेगा, उसे दीर्घकालिक शुभ फल प्राप्त हो सकते हैं।