होलिका दहन: असत्य पर सत्य की जीत का पर्व
होलिका दहन भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह पर्व फाल्गुन पूर्णिमा की रात को मनाया जाता है और इसके अगले दिन रंगों का त्योहार होली खेली जाती है। होलिका दहन न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह जीवन में सकारात्मकता और शुभता का संदेश भी देता है।
होलिका दहन की पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, असुरराज हिरण्यकशिपु को भगवान शिव से यह वरदान मिला था कि उसे कोई देवता, मनुष्य, पशु या अस्त्र-शस्त्र नहीं मार सकता। इससे वह अहंकारी हो गया और अपने पुत्र प्रह्लाद को भी भगवान विष्णु की भक्ति से रोकने लगा। जब प्रह्लाद नहीं माने, तो उसने अपनी बहन होलिका को बुलाया, जिसे आग में न जलने का वरदान था।
होलिका, प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका स्वयं जलकर भस्म हो गई और प्रह्लाद सुरक्षित रहे। इस घटना के बाद, हर वर्ष होलिका दहन किया जाता है, जिससे यह संदेश मिलता है कि असत्य और अहंकार की उम्र छोटी होती है, लेकिन सत्य और भक्ति अमर रहती है।
होलिका दहन का महत्व
1. बुराई का अंत: यह त्योहार हमें सिखाता है कि चाहे बुराई कितनी भी ताकतवर हो, अंत में जीत सच्चाई की ही होती है।
2. नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति: मान्यता है कि होलिका दहन की अग्नि से नकारात्मकता समाप्त होती है और वातावरण शुद्ध होता है।
3. सामाजिक समरसता: यह पर्व पूरे समाज को एक साथ लाता है, जिससे आपसी प्रेम और भाईचारा बढ़ता है।
4. नए जीवन की शुरुआत: इस दिन लोग अपने जीवन की बुरी आदतों और नकारात्मक सोच को खत्म करने का संकल्प लेते हैं।
होलिका दहन की विधि और पूजन विधान
1. लकड़ियां और उपले इकट्ठा करना: पहले से ही एक स्थान पर लकड़ियां, उपले और सूखी घास इकट्ठी की जाती हैं।
2. होलिका की स्थापना: एक लकड़ी को केंद्र में रखकर उसके चारों ओर छोटी-छोटी लकड़ियां सजाई जाती हैं।
3. गेंहू और चने की बाली अर्पण करना: आग में गेहूं और चने की बालियां डालकर फसल की समृद्धि की प्रार्थना की जाती है।
4. परिक्रमा और हवन: लोग होलिका की परिक्रमा करते हैं और मंत्रों का उच्चारण कर सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
5. दहन: शुभ मुहूर्त में होलिका को अग्नि दी जाती है और सभी लोग बुरी शक्तियों के नाश की प्रार्थना करते हैं।
होलिका दहन के साथ बुरी आदतों का त्याग
इस पर्व का आध्यात्मिक संदेश यह भी है कि हम अपने अंदर की बुरी आदतों, जैसे क्रोध, ईर्ष्या, लालच और अहंकार को भी होलिका की अग्नि में जलाकर अपने जीवन में सकारात्मकता लाएं। यह आत्म-सुधार और आत्म-जागृति का पर्व भी है